आखिर Deepfake क्या है, कैसे करें असली-नकली की पहचान , जानिए सब कुछ

Vishal Purohit

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What is Deepfake
हाल ही में साउथ अभिनेत्री रश्मिका मंदाना के एक वायरल वीडियो ने फिर से डीपफेक (Deep Fake) की तकनीक को हवा दे दी है। दरअसल, यह वायरल वीडियो सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर जारा पटेल का था जिसे एडिट करके जारा पटेल के चेहरे को रश्मिका मंदाना के चेहरे से रिप्लेस कर दिया गया। इस वीडियो के सामने आने के बाद बॉलीवुड सेलीब्रिटीज ने इस पर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। आइए जानते हैं कि आखिर डीपफेक क्या है और इसे पहचानने का तरीका क्या है?

क्या होता है डीपफेक: What is Deepfake?

डीपफेक इमेज और वीडियो दोनों रूप में हो सकता है। इसे एक स्पेशल मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके बनाया जाता है जिसे डीप लर्निंग कहा जाता है। डीप लर्निंग में कंप्यूटर को दो वीडियोज या इमेज दिए जाते हैं जिन्हें देखकर वह खुद ही दोनों वीडियो या इमेज को एक ही जैसा बनाता है। इस तरह के फोटो वीडियोज में हिडेन लेयर्स होते हैं जिन्हें सिर्फ एडिटिंग सॉफ्टवेयर से ही देखा जाता है। साफ शब्दों में कहें तो डीपफेक, रियल इमेज-वीडियोज को बेहतर रियल फेक फोटो-वीडियोज में बदलने का एक प्रोसेस है। जिसमें फोटो-वीडियोज फेक होते हुए भी रियल जैसे ही नजर आते हैं।

कैसे बनता है डीपफेक वीडियो

डीपफेक दो नेटवर्क की मदद से बनता है जिनमें एक इनकोडर होता है और दूसरा डीकोडर नेटवर्क होता है। इनकोडर नेटवर्क सोर्स कंटेंट यानि असली वीडियो को एनालाइज करता है और फिर डाटा को डीकोडर नेटवर्क को भेजता है। उसके बाद फाइनल आउटपुट निकलता है जो कि बिल्कुल असली जैसा है लेकिन वास्तव में वह फेक होता है। डीपफेक के लिए कई वेबसाइट्स और एप हैं जहां लोग डीपफेक वीडियोज बना रहे हैं।

 

कैसे करें असली-नकली का फर्क

इस तरह के फोटो-वीडियोज को पहचानना बहुत ज्यादा आसान तो नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये नामुमकिन है। इस तरह के फेक वीडियो को पहचानने के लिए आपको वीडियो को बहुत ही बारिकी से देखना होगा। खासतौर से फेस एक्सप्रेशन, आंखों की मूवमेंट और बॉडी स्टाइल को। इसके अलावा बॉडी कलर से भी आप इन्हें पहचान सकते हैं। आमतौर पर ऐसे वीडियोज में चेहरे और बॉडी का कलर मैच नहीं करता है। इसके अलावा लिप सिंकिंग से भी इस तरह के वीडियोज की पहचान की जा सकती है। ऐसे वीडियोज को आप लोकेशन और एक्स्ट्रा ब्राइटनेस से भी पहचान सकते हैं।

कितने साल की हो सकती है सजा

भारत में इस तरह के डिजिटल अपराधों, सोशल मीडिया से जुड़ी गतिविधियों या फेक न्यूज से निपटने के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में सरकार चाहे तो ऐसे मामलों में आईटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई कर सकती है। खुद पीड़ित की शिकायत के आधार पर मुकदमा दर्ज करके भी इस तरह से किसी को बदनाम करने, उसकी छवि खराब करने या उसके फर्जी वीडियो बनाने के आरोप में एक्शन लिया जा सकता है। IT ऐक्ट की धारा 66C के तहत ऐसे मामलों में पहचान चोरी का मुकदमा बनता है। अगर इस तरह से किसी की पहचान का गलत इस्तेमाल किया जाता है और उसके इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर, फेस पासवर्ड या अन्य किसी पहचान का गलत इस्तेमाल किया जाता है तो 1 लाख रुपये का जुर्माना और 3 महीने की सजा हो सकती है। और तो और इस मामले में सजा को 3 साल तक बढ़ाया भी जा सकता है। वहीं, बिना किसी की अनुमति के उसके प्राइवेट एरिया की फोटो लेने, उसे पब्लिश करने या शेयर करने पर 3 साल की जेल और 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।

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